Pranav Shukla is the Headlines for “The Sunday Headlines”

 “अनादि” का शाब्दिक अर्थ जिसका ना तो कोई अंत है न कोई शुरुआत ।  निसंदेह यह शब्द आज समाज या देश दुनिया में समय, काल, परिस्थिति अनुसार विभिन्न रूपों में प्रयोग में लाया जा रहा होगा । अनादि के इस प्रयोग की श्रृंखला में एक शख्स ऐसा भी है, जो भले ही अपने पारिवारिक संस्कारों के कारण सही पर “अनादि” का यथार्त रूप में प्रयोग करते हुए कभी ना शुरू व् ख़त्म होने वाले अनादि के इस शब्द को एक नया स्वरुप देकर अनगिनत लोगों व् परिवारों को अनादि के साथ जोड़ रहा है। प्रणव शुक्ला नाम के इस युवा ने “अनादि” को अपने कर्म व् संस्कारों से जो आधुनिक स्वरुप दिया है।

उसे शब्दों में बंधना कठिन ही नहीं अपितु नामुमकिन है। सन्डे का दिन हो और “दी संडे हेडलाइन्स” की हेडलाइन न हो ऐसा हो नहीं सकता।  अपने कार्य दायित्व के निर्वहन में “दी संडे हेडलाइन्स” इस संडे भी अछूता नहीं रहा। मैं बात कर रहा हूँ आबादी के लिहाज से 25 लाख की जनसंख्या वाले अपने फरीदाबाद नगर के नगर निगम सभागार में आयोजित समारोह के प्रेरणाश्रोत उस युवा की जो विश्व की ग्लैमर इंडस्ट्री की टॉप टेन कंपनी में शुमार कंपनी का प्रतिनिधित्व भले ही करता हो पर इतने बड़े स्तर पर प्रतिनिधित्व करने के बाबजूद भी प्रणव ने कभी भी अपने परिवार के संस्कारों को खुद से कभी अलग नहीं होने दिया। अपने पिता को इसके लिए अपना प्रेरणा स्रोत मानने वाले प्रणव ने आज नगर निगम सभागार में आयोजित समारोह से असंख्य लोगों को जोड़कर यह साबित कर दिया की संडे के दिन दी संडे हेडलाइन्स से जुड़ा यदि कोई व्यक्तित्व  हो सकता है तो वो है प्रणव शुक्ला।
दरअसल मैं बात कर रहा हूँ  फरीदाबाद के गांव पाली स्थित बृद्ध आश्रम “अनादि सेवा प्रकल्प” के संचालक प्रणव शुक्ला की जिसने ग्लैमर इंडस्ट्री के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र के अलावा वृद्ध जनों के सम्मान में समर्पित किये गए अपने प्रयासों की कड़ी में एक और नई शुरुआत की है। दरअसल यह वृद्ध जनों के सम्मान की कड़ी में एक और नई कड़ी की शुरुआत है।  जिसे  “छाँव” नाम दिया गया ।  “छाँव” की शुरुआत का उद्देश्य असहाय, लाचार व् बेसहारा वृद्ध जनों को ऐसा वातावरण देना है।  जिसमें रहकर वे अपने जीवन के अंतिम पड़ाव की विपरीत परिस्थितियों में “अनादि सेवा प्रकल्प” (Anadi Seva Prakalp) के प्रयास से ही सही राहत महसूस कर उनसे जुड़े लोगों को अपनी दुआएं दे सके। बताना चाहूंगा की अनादि सेवा प्रकल्प सामाजिक क्षेत्र में इस प्रकार के वृद्ध जनों की  लिए गंभीरता से प्रयासरत है।  जिसने अनेकों असहाय व् बेसहारा वृद्ध जनों से खुद को जोड़कर उन्हें छाँव अर्थात अपने यहाँ आश्रय देने की एक ऐसी मुहीम शुरू की है।  जो असंख्य ऐसे असहाय व् लाचार वृद्ध जनों की निस्वार्थ भाव से सेवा कर रही है जिन्हे उनके अपनों ने ही ढलती उम्र के इस पड़ाव में खुद ही उन्हें घर से बेघर कर दिया । जब उन्हें अपनों की आज सबसे ज्यादा जरुरत है।

मैं और ज्यादा कुछ ना कहते हुए इस सम्पादकीय लेख को लिखते हुए इतना गंभीर होकर कुछ ऐसा चिंतन और मनन करने के लिए विवश हो गया जिसके परिणाम स्वरुप कुदरत मेरी कलम को इतनी ताक़त दे जिसके बल पर मैं समाज के आलावा देश-दुनिया में ऐसा वातावरण बना सकूँ जो अलबत्ता तो जीवन के अंतिम क्षणों में इस प्रकार का दंश झेल रहे वृद्ध जनों के परिवारों को ऐसी सदबुद्धि दे सके  की वे अपने वृद्धजनों को खुद आकर वापिस अपने घरों में पहले से अधिक सेवा के लिए ले जाकर जाने-अनजाने में किये अपने पापों का प्रायश्चित कर सके और जिन लोगों व् परिवारों के अपने वृद्ध जान नहीं हैं वे “अनादि सेवा प्रकल्प” की छाँव से जुड़कर शायद पुण्य के भागी बन सकें ।

आपका
चन्दन