हल्द्वानी: उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से लगी भारत-चीन सीमा के गांव उजाड़ हो गए है, जबकि ड्रैगन (चीन) अपने सीमावर्ती गांवों को तेजी से आबाद करने में जुटा है। तिब्बत के दो सीमावर्ती गांव दारचिल व कुफू पिछले पांच वर्ष में कस्बे बन गए हैं। भारतीय खुफिया एजेंसियों ने सामरिक दृष्टि से इसे बड़ी चिंता माना है और इस संबंध में केंद्र सरकार को सीमांत गांवों को फिर से आबाद करने की सलाह दी है। सीमावर्ती गांवों में नागरिकों को बिना हथियार का सैनिक माना जाता है। उनकी मौजूदगी से सीमा पर कोई भी गतिविधि किसी से छिपी नहीं रह सकती है, लेकिन अब भारतीय गांवों में सन्नाटा पसरा है। लोग पुस्तैनी गांव से पलायन कर चुके हैं। इसके ठीक उलट चीन का फोकस भारतीय सीमा से लगे गांवों में आधारभूत सुविधा बढ़ाने के साथ ही आबादी बसाने पर केंद्रित है। सैनिक छावनी भी सीमा के कस्बों में आबाद हो गई है। भारत की सीमा के सबसे करीब चीन अधिकृत तिब्बत का तकलाकोट बाजार है। यह बड़ी व्यावसायिक मंडी बन चुका है। चीन ने यहां तक फोरलेन सड़क बनाने के साथ ही सैनिक छावनी व एयरबेस तक बना दिए हैं। इसके विपरीत भारतीय सीमावर्ती क्षेत्र आज भी सड़क से नहीं जुड़ पाए। भारतीय खुफिया एजेंसियों ने इस चिंता से भारत सरकार को अवगत कराया है। गांव छोड़ पलायन कर गए लोगों को फिर से गांवों में बसाने के लिए कोई कारगर योजना लागू करने की पैरवी भी की है।
खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट बताती है कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में 12,600 फीट की ऊंचाई पर भारत के अंतिम गांव कुटी, सीपू, तिदांग, गो, मरछा, गुंजी, नपल्च्यू, नाबी गांव भोटिया जनजाति बाहुल्य हैं। एक दशक पहले तक इन आठ गांवों में ही 15 से 20 हजार की आबादी थी।
मूलभूत सुविधाओं तक से वंचित इस क्षेत्र में अब ढाई सौ की आबादी ही रह गई है। गांव के गांव उजाड़ हो चुके हैं। क्षेत्र में दुनिया के सबसे खूबसूरत ग्लेशियरों में से एक मिलन के गांव भी उजड़ चुके हैं। मिलन गांव में कभी पांच सौ परिवार रहते थे, लेकिन अब महज दो परिवार रह गए हैं। इसकी बड़ी वजह सड़क, शिक्षा, चिकित्सा की सुविधा नहीं होना रहा।
भारत सरकार ने एक दशक पहले चीन सीमा से लगे गांवों को आबाद करने करने के उद्देश्य से बार्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम (बीएडीपी) शुरू किया था। शुरुआती दौर में इसमें उत्तराखंड, कश्मीर, हिमाचल व अरुणांचल के सिर्फ नौ ब्लाकों के गांव शामिल किए गए। बाद में इस योजना में नेपाल बार्डर के गांव शामिल कर योजना का क्रियान्वयन ब्लाक मुख्यालयों से सुपुर्द कर दिया गया। योजना पर आशा के अनुरूप काम नहीं हुआ। स्थिति यह है कि वित्तीय वर्ष 2015-2016 में सीमांत जिले पिथौरागढ़ को इस मद में 11.17 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे और महज 25 फीसद भी काम नहीं हो पाया।
पलायन गंभीर चिंता का विषय
आइटीबीपी के सेनानी महेंद्र प्रताप ने बताया कि सीमावर्ती गांवों से पलायन गंभीर चिंता का विषय है। आइटीबीपी इन गांवों में रहने वाले लोगों के लिए अपने स्तर से तथा बीएडीपी मद से कई कार्य कर रही है ताकि लोग गांव में ही रहें। सीमांत क्षेत्र तक बिजली और सड़क जरूरी है। इस समय सरकार क्षेत्र को ऊर्जीकृत कर रही है। सड़क का निर्माण हो रहा है। लोगों को अभी और प्रेरित करने की जरूरत है।
Source: Jagran
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