जिंदगी की एक बूंद- कतरा कतरा मिलती है ‘इजाजत’: आशा

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आशा-पंचम-गुलजार

इन तीन महान कलाकारों के संयोग ने हमेशा ही सुनने वालों को अपने जादू से सम्मोहित कर लिया है. इस तिकड़ी ने सदा ही श्रोताओं को आकर्षित और सम्मोहित किया है. यहां पेश है इस तिकड़ी का एक और ऐसा करिश्मा जिसे जितना सूना जाए कम ही लगता है|

1987 में आई फ़िल्म इजाजत में एक से बढ़कर एक बेहतरीन गीत थे. ये सभी गीत आशा भोसले ने ही गाए थे. इस फिल्म के एक गीत ‘मेरा कुछ सामान’ ने आशा को सर्वश्रेष्ठ गायिका और गीतकार गुलजार को सर्वश्रेष्ठ गीत के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार दिलवाया था|

यह कहानी थी एक ऐसे विवाहित जोड़े की जो परिस्थितियों के चलते अलग हो गए और फिर एक रोज अचानक एक रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम में एक-दूसरे से जा टकराए|

इस मुलाकात में यह दोनों अपनी बीती हुई जिंदगी से जुड़ी बहुत सी बातें खंगालते हैं. महेंदर (नसीरुद्दीन शाह) को सुधा (रेखा) मजबूरीवश शादी करनी पड़ जाती है जबकि वो माया (अनुराधा पटेल) से प्यार करता है|

सुधा माया के लिए महेंदर का प्यार जानती और समझती है. वह इस परिस्थिति का बहुत समझदारी से सामना करती है. सुधा महेंदर से बहुत प्यार करती है और उसके साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहती है. वो ये भी जानती है कि महेंदर का पूरा प्यार उसके लिए नहीं है. लेकिन वो जीवन को जीना चाहती है. इस प्रेम-त्रिकोण को गुलजार ने बहुत संवेदनशील तरीके से दर्शाया है|

यह गीत शुरू होता है बांसुरी की आवाज से और सुनने वालों को प्यार से सहलाता है. उसके बाद आती है कुछ अन्य वाद्यों की आवाज जिसमें आशा भोसले की आवाज घुलकर बहने लगती है.

यह गाना पूरी तरह से आशा की आवाज पर ही निर्भर करता है. छेड़ती, इशारा करती, पूरे गले की आवाज जो बहुत मीठी और खालिस है. इस गाने की सबसे सबसे ख़ास बात आशा भोसले हैं, जलाती और डराती, वो भी बहुत खूबसूरती से.

कतरा कतरा मिलती है, कतरा कतरा जीने दो
जिंदगी है, जिंदगी है, कतरा कतरा बहने दो
प्यासी हूं मैं, प्यासी रहने दो
रहने दो ना…

महेंदर के साथ जितना भी समय मिला है सुधा को, वो उसके लिए खुद को बहुत खुशकिस्मत मानती है. जिंदगी के ये कतरे उसे जीने की वजहें दे रहे हैं. उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसके जीवन में प्यार की कमी है.

इन लम्हों में पंचम का गूंजता हुआ संगीत मौजूद है. यह एक मखमली संगीत है जो परिस्थितियों को स्पष्ट करता है. बेस गिटार उन मौकों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है जब संगीत टूटे-फूटे अक्षरों के बीच अपनी जगह तलाशता है.

कल भी तो कुछ ऐसा ही हुआ था
नींद में थी, तुमने जब छुआ था
गिरते गिरते बाहों में बची मैं
सपने पे पांव पड़ गया था
सपनों में, बहने दो…

महेंदर की छुअन ने सुधा को उसकी बाहों में टूटकर बिखरने को मजबूर कर दिया था. ऐसा लगा जैसे वो किसी सपने से जागी हो. इस तरह वो अपने सपने के बारे में समझ पाई थी. लेकिन अब वो अपने उस सपने से बाहर ही नहीं आना चाहती. वो इसी सपने में बार-बार गोते खाना चाहती है|

यहां पर हमें वॉयलिन की धुन भी सुनाई देती है. उसके बाद कुछ संतूर और फिर ड्रम की बीट भी|

तुमने तो आकाश बिछाया
मेरे नंगे पैरों में जमीन है
पा के भी तुम्हारी आरजू है
शायद ऐसी ज़िंदगी हसीं है
आरजू में बहने दो…

वो खुश है, सातवें आसमान पर है और महेंदर का साथ उसे एक अच्छे भविष्य के सपने दिखा रहा है. लेकिन इसके साथ ही वो इस हकीकत से भी वाकिफ है कि वो किसी और के इश्क की गिरफ्त में है|

इसलिए वो उसे पा लेने से ज्यादा उसकी चाह का साथ पाकर ज्यादा खुश है. यह आरजू उसकी जिंदगी में एक रोमांच भर रही है. वो अपनी आरजू में ही बहना चाहती है|

पंचम ने आवाज के ऊपर आवाज चढ़ाकर एक बेहतरीन इफेक्ट पैदा किया है. यह आपको बहने, तैरने और डूब जाने का एहसास करवाता है|

हल्के-हल्के कोहरे के धुएं में
शायद आसमां तक आ गयी हूं
तेरी दो निगाहों के सहारे
देखो तो कहां तक आ गयी हूं
कोहरे में, बहने दो

जिंदगी की इस खूबसूरत धुंध में वो महेंदर पर भरोसा करती है और उसी के साथ खुशी के उस दौर में वो आगे बढ़ते रहना चाहती है. लेकिन उसे रुकना नहीं है. वो इसी धुंध में डूबते जाने चाहती है.इस मुलाकात में यह दोनों अपनी बीती हुई जिंदगी से जुड़ी बहुत सी बातें खंगालते हैं. महेंदर (नसीरुद्दीन शाह) को सुधा (रेखा) मजबूरीवश शादी करनी पड़ जाती है जबकि वो माया (अनुराधा पटेल) से प्यार करता है|

यह गाना पूरी तरह से आशा की आवाज पर ही निर्भर करता है. छेड़ती, इशारा करती, पूरे गले की आवाज जो बहुत मीठी और खालिस है. इस गाने की सबसे सबसे ख़ास बात आशा भोसले हैं, जलाती और डराती, वो भी बहुत खूबसूरती से|

कतरा कतरा मिलती है, कतरा कतरा जीने दो
जिंदगी है, जिंदगी है, कतरा कतरा बहने दो
प्यासी हूं मैं, प्यासी रहने दो
रहने दो ना…

महेंदर के साथ जितना भी समय मिला है सुधा को, वो उसके लिए खुद को बहुत खुशकिस्मत मानती है. जिंदगी के ये कतरे उसे जीने की वजहें दे रहे हैं. उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसके जीवन में प्यार की कमी है|

इन लम्हों में पंचम का गूंजता हुआ संगीत मौजूद है. यह एक मखमली संगीत है जो परिस्थितियों को स्पष्ट करता है. बेस गिटार उन मौकों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है जब संगीत टूटे-फूटे अक्षरों के बीच अपनी जगह तलाशता है.

कल भी तो कुछ ऐसा ही हुआ था
नींद में थी, तुमने जब छुआ था
गिरते गिरते बाहों में बची मैं
सपने पे पांव पड़ गया था
सपनों में, बहने दो…

महेंदर की छुअन ने सुधा को उसकी बाहों में टूटकर बिखरने को मजबूर कर दिया था. ऐसा लगा जैसे वो किसी सपने से जागी हो. इस तरह वो अपने सपने के बारे में समझ पाई थी. लेकिन अब वो अपने उस सपने से बाहर ही नहीं आना चाहती. वो इसी सपने में बार-बार गोते खाना चाहती है.

यहां पर हमें वॉयलिन की धुन भी सुनाई देती है. उसके बाद कुछ संतूर और फिर ड्रम की बीट भी.

तुमने तो आकाश बिछाया
मेरे नंगे पैरों में जमीन है
पा के भी तुम्हारी आरजू है
शायद ऐसी ज़िंदगी हसीं है
आरजू में बहने दो…

वो खुश है, सातवें आसमान पर है और महेंदर का साथ उसे एक अच्छे भविष्य के सपने दिखा रहा है. लेकिन इसके साथ ही वो इस हकीकत से भी वाकिफ है कि वो किसी और के इश्क की गिरफ्त में है|

इसलिए वो उसे पा लेने से ज्यादा उसकी चाह का साथ पाकर ज्यादा खुश है. यह आरजू उसकी जिंदगी में एक रोमांच भर रही है. वो अपनी आरजू में ही बहना चाहती है|

पंचम ने आवाज के ऊपर आवाज चढ़ाकर एक बेहतरीन इफेक्ट पैदा किया है. यह आपको बहने, तैरने और डूब जाने का एहसास करवाता है|

हल्के-हल्के कोहरे के धुएं में
शायद आसमां तक आ गयी हूं
तेरी दो निगाहों के सहारे
देखो तो कहां तक आ गयी हूं
कोहरे में, बहने दो

जिंदगी की इस खूबसूरत धुंध में वो महेंदर पर भरोसा करती है और उसी के साथ खुशी के उस दौर में वो आगे बढ़ते रहना चाहती है. लेकिन उसे रुकना नहीं है. वो इसी धुंध में डूबते जाने चाहती है.