‘भारतीय वायुसेना के लिए नाकाफ़ी है 36 रफ़ाएल विमान’
रफ़ाएल लड़ाकू विमानों की ख़रीद के लिए भारत और फ्रांस के बीच शुक्रवार को हस्ताक्षर होने जा रहा है.
पहले 18 विमानों का सौदा हुआ था लेकिन अब भारत फ्रांस से 36 विमान लेनेवाला है.
जब लड़ाकू विमानों की ख़रीदारी के लिए टेंडर निकाला गया था तो मुक़ाबले में कुल छह कंपनियों के विमान थे. पर एयरफोर्स ने रफ़ाएल को सबसे बेहतर पाया.
लेकिन भारत के लिए इतने विमान नाकाफ़ी हैं.
विमान की ख़रीद की प्रक्रिया यूपीए सरकार ने 2010 में शुरू की थी. 2012 से लेकर 2015 तक इसे लेकर बातचीत चलती रही
जब 126 विमानों की बात चल रही थी तब उस वक़्त ये सौदा हुआ था कि 18 विमान भारत ख़रीदेगा और 108 विमान बंगलौर के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में एसेम्बल होने थे. लेकिन यह सौदा हो नहीं पाया.
अप्रैल 2015 में फिर मौजूदा मोदी सरकार ने पेरिस में यह घोषणा की कि हम 126 विमानों के सौदे को रद्द कर रहे हैं और इसके बदले 36 विमान सीधे फ्रांस से ख़रीद रहे हैं और एक भी रफ़ाएल विमान बनाएंगे नहीं.
रफ़ाएल विमान परमाणु मिसाइल डिलीवर करने में सक्षम होता है. हर विमान में यह खूबी नहीं होती है.
इसके अंदर जिस तरह के हथियारों की इस्तेमाल करने की क्षमता है वो दुनिया में सबसे सुविधाजनक है.
इसमें दो तरह की मिसाइलें हैं. एक की रेंज डेढ़ सौ किलोमीटर है तो दूसरी की रेंज क़रीब तीन सौ किलोमीटर की है.
इतना अत्याधुनिक विमान फ़िलहाल भारत के दो मुख्य प्रतिद्वंदी पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन के पास भी नहीं.
रफ़ाएल विमान मिराज 2000 का एडवांस्ड वर्जन है. भारतीय एयरफ़ोर्स के पास 51 मिराज 2000 है और इन्हें मिराज 2000-5 में अपग्रेड किया जा रहा है.
इससे इनकी क्षमता काफ़ी हद तक बढ़ने वाली है. इससे भारतीय एयरफोर्स को बहुत ताकत मिलेगी. भारत को अभी पर्याप्त संख्या में ऐसे अत्याधुनिक विमानों की ज़रूरत है. ये ज़रूरत एक हद तक इस अपग्रेड तक पूरी होगी.
भारत ने पहले मिराज 2000 के दो स्क्वैड्रन लिए थे. दस साल बाद एक स्क्वैड्रन इसमें जोड़ा गया. हो सकता है रफ़ाएल के मामले में भी ऐसा हो.
लेकिन इस मामले में फ़िलहाल इस तरह की कोई बात नहीं हुई है.
एक स्क्वैड्रन में 16 से 18 विमान होते हैं.
सौदे के अंदर यह क्लॉज होगा कि इन 36 विमानों के अलावा भारत अगर 18 और विमान लेना चाहता है तो वो इसी क़ीमत पर उपलब्ध होंगे.
ध्यान देने की बात यह है कि फ्रांस के साथ जो यह सौदा हो रहा है वो भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच हो रहा है. ये डील रफ़ाएल बनाने वाली कंपनी दासो के साथ नहीं हो रही.
भारत को दासो को 15 फ़ीसदी एडवांस (करीब साठ हज़ार करोड़ रुपये) देने होंगे तब जाकर उन विमानों पर काम शुरू होगा.
सौदा पक्का होने के बाद विमान की पहली खेप आने में ढ़ाई से तीन साल लग जाएंगे.
भारत के अलावा दासो के पास उस समय क़तर और मिस्र के ऑर्डर भी है. भारत सलाई मिलने के मामले में नंबर तीन पर है.
एक बात यह भी चल रही है कि फ्रांस का एयरफोर्स अपने रफ़ाएल भारत को लीज़ पर दे ताकि भारतीय वायु सेना के पायलटों को उसे उड़ाने में दक्षता हासिल हो.
रफ़ाएल के आने के बाद मुमकिन है कि दक्षिण एशिया में हथियारों की होड़ बढ़े.
लेकिन वो शायद महज़ 36 पर शुरु न होगा. हां एक और स्क्वैड्रन आने के बाद हालात कुछ बदल जाएं.
source: BBC HINDI
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