26 साल बाद कांग्रेसी ‘युवराज’ का अयोध्या दौरा
शुक्रवार, नौ सितंबर, 2016 की सुबह साढ़े नौ-दस बजे के आसपास जब राहुल गांधी अयोध्या की प्रसिद्ध हनुमान गढ़ी में दर्शन करेंगे तो वे बाबरी मस्जिद कांड के बाद अयोध्या जाने वाले नेहरू-गांधी परिवार के पहले वंशज होंगे.
1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री और राहुल के पिता राजीव गांधी ने कांग्रेस के लोक सभा चुनाव प्रचार की शुरुआत अयोध्या से की थी, हालांकि वे हनुमान गढ़ी नहीं जा पाए थे, हालांकि यह उनके कार्यक्रम में था.
1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री और राहुल के पिता राजीव गांधी ने कांग्रेस के लोक सभा चुनाव प्रचार की शुरुआत अयोध्या से की थी, हालांकि वे हनुमान गढ़ी नहीं जा पाए थे, हालांकि यह उनके कार्यक्रम में था.
1990 में सद्भावना यात्रा के दौरान राजीव गांधी का गुज़र अयोध्या से हुआ था.
लेकिन तबसे हनुमान गढ़ी तो दूर, अयोध्या भी उनके परिवार का कोई कांग्रेसी नहीं गया. सोनिया ने फैज़ाबाद में तो सभाएं कीं लेकिन अयोध्या से वे दूर ही रहती आई हैं.
वैसे, राजीव अयोध्या में हनुमान गढ़ी दर्शन से कहीं ‘बड़ा’ काम कर चुके थे जिसके बल पर उन्होंने 1989 के उस चुनावी सभा में ‘राम-राज्य’ लाने का वादा किया था.
राहुल गांधी का हनुमान गढ़ी के दर्शन करने का कार्यक्रम पहले नहीं था. बुधवार की रात अचानक इसे उनके कार्यक्रम में जोड़ा गया. जोड़ा यह भी गया कि अयोध्या के बाद जब वे रोड शो करते हुए अम्बेडकरनगर जाएंगे तो किचौछा शरीफ़ दरगाह पर भी मत्था टेकेंगे.
राहुल इस समय उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों-कस्बों में रोड शो कर रहे हैं. उनकी यात्रा को ‘किसान यात्रा’ का नाम दिया गया है. राहुल की यह यात्रा देवरिया से अपनी शुरुआत ही में ‘खाट-प्रकरण’ के कारण चर्चा या विवाद में आ गई. सोशल साइटों पर तब से ‘खाट’ ट्रेंड कर रहा है.
देवरिया के बाद राहुल को गोरखपुर, गोण्डा होकर शुक्रवार को अयोध्या-फैज़ाबाद में रोड शो और किसानों से मुलाक़ात करते हुए अम्बेडकर नगर जाना था. “खाट-प्रकरण” उनके साथ-साथ चल रहा था लेकिन अब हनुमान गढ़ी का दर्शन उनके कार्यक्रम में जुड़ जाने से फोकस बदल गया लगता है.
क्या कांग्रेसी रणनीतिकारों ने ‘किसान यात्रा’ में ऐन वक्त पर ‘मंदिर टच’ जान-बूझ कर दिया है? क्या राहुल के हनुमान गढ़ी दर्शन से कांग्रेस कोई ख़ास संदेश यू पी के मतदाताओं को देना चाहती है? क्या आने वाले विधान सभा चुनाव में भाजपा की काट के लिए कांग्रेस को थोड़ा हिंदू-झुकाव भी ज़रूरी लग रहा है?
जिन ब्राह्मण वोटों पर इस बार कांग्रेस सबसे ज़्यादा ज़ोर दे रही है, क्या राहुल का हनुमान गढ़ी प्रवेश उसे आसान बना देगा?
कई सवाल एकाएक उछलने लगे हैं.
राहुल के हनुमान गढ़ी में पूजन-अर्चन को 27 साल पहले की उनके पिता की रणनीति से जोड़कर भी देखा जाने लगा है.
राजीव गांधी ने अपने दोस्तों-सलाहकारों के कहने पर बाबरी मस्जिद मामले में कई तरह के फ़ैसले लिए थे: 1989 में विश्व हिंदू परिषद को अयोध्या के विवादित क्षेत्र में राम मंदिर के शिलान्यास की इजाज़त दी थी. इसकी परिणति छह दिसम्बर, 1992 को बाबरी मस्जिद ध्वंस में हुई, जिसने कांग्रेस को अपने व्यापक मुस्लिम जनाधार से वंचित कर दिया.
27 साल से कांग्रेस यूपी की सत्ता से बाहर है. ’27 साल यूपी बेहाल’ का नारा लेकर इस बार वह नए चुनावी प्रबंधन कौशल से प्रदेश में पैर जमाने निकली है. ये 27 साल यूपी में कांग्रेस की बदहाली के भी हैं. क्या इस बदहाली को दूर करने के लिए राहुल को अयोध्या और हनुमान गढ़ी की यात्रा ज़रूरी लग रही है?
बताया तो यह जा रहा है कि अयोध्या-फैज़ाबाद से कांग्रेस का टिकट चाहने वालों ने, जिनमें एक महंत भी हैं, राहुल के सलाहकारों तथा कांग्रेस के रणनीतिकारों पर दवाब बनाया और तब बुधवार की रात राहुल के हनुमान गढ़ी जाने का कार्यक्रम तय हुआ.
उन्हें यह समझाया गया कि सोनिया गांधी अपने वाराणसी रोड शो में काशी-विश्वनाथ के दर्शन नहीं कर पाई थीं. बहाना उनकी बीमारी बना लेकिन हिंदुओं में चर्चा यह रही कि रोड शो में बड़ी संख्या में मुस्लिम उपस्थिति देख कर सोनिया बाबा विश्वनाथ के दर्शन करना टाल गईं.
राहुल और उनके सलाहकारों की रणनीति यदि इस बहाने हिंदू-कार्ड चलना है तो इतिहास में, विशेषकर राजीव गांधी की मंदिर-चाल में उनके लिए एक बड़ा सबक़ तो हो ही सकता है, यदि वे उस ओर देखना चाहें.
तनिक वाम झुकाव वाली कांग्रेस की मध्यमार्गी नीति से किनारा करते हुए राजीव गांधी ने 1986 से 1989 के बीच हिंदू झुकाव का जो रास्ता अपनाया उसने जहां देश को विकास के मार्ग से भटका कर धर्म की राजनीति का अखाड़ा बना दिया वहीं कांग्रेस पार्टी के धीरे-धीरे अप्रासंगिक होते जाने का रास्ता भी तैयार कर दिया था.
धर्म की राजनीति करने के लिए दूसरी पार्टियां अखाड़े में पहले से मौजूद थीं. विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठनों की सहायता से भाजपा ने फ़ौरन राम मंदिर को चुनावी राजनीति का मुख्य मुद्दा बना डाला.
आज भी राहुल और उनकी कांग्रेस इस मामले में भाजपा का क़तई मुकाबला नहीं कर सकते. भाजपा को टक्कर देने के लिए उस ही की तरह बनने की कोशिश करने की बजाय कांग्रेसी मूल्यों की पुनर्स्थापना क्या बेहतर तरीक़ा नहीं होगा?
जिस निचले पायदान पर आज कांग्रेस खड़ी है वहां से उसे वापसी का रास्ता ढूंढना है. उससे नीचे मोदी जी का ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ है और वहां कांग्रेस निश्चय ही नहीं लुढ़कना चाहेगी.
आश्चर्य है कि राहुल अपने रोड शो और किसान पंचायतों में सीधे नरेंद्र मोदी और उनकी ‘सूट-बूट की सरकार’ को निशाना बना रहे हैं. उनके प्रचार का अंदाज़ लोकसभा चुनाव की याद दिलाता है.
चुनाव यूपी के होने हैं और यहां सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी उनकी आलोचना का केंद्र नहीं है. इस प्रदेश की बदहाली को दूर करने का कोई रोड मैप उनके मुंह से नहीं सुनाई देता.
किसानों की ऋण माफी का मुद्दा वे सीधे विजय माल्या से जोड़ते हैं लेकिन मुख्यमंत्री पद की अपनी उम्मीदवार ‘दिल्ली का कायाकल्प कर देने वाली’ शीला दीक्षित को प्रदेश के मतदाताओं से परिचय नहीं करा रहे.
बहरहाल, देखना होगा कि 27 साल बाद अयोध्या आ रहे पहले कांग्रेसी युवराज हनुमान गढ़ी दर्शन-पूजन के बाद किस तेवर में दिखाई देते हैं!
Source : BBC hindi
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