उत्तराखंड: राष्ट्रपति के फैसले भी गलत हो सकते हैं: नैनीताल हाईकोर्ट

उत्तराखंड nainital~20~04~2016~1461140578_storyimageमें राष्ट्रपति शासन लगाने को लेकर केंद्र सरकार को तीसरे दिन लगातार हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणियों का सामना करना पड़ा।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की राष्ट्रपति शासन लागू करने व लेखानुदान अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की खंडपीठ ने केंद्र के वकील से पूछा कि कैसे प्रमाणित करोगे कि मनी बिल गिर गया।

एडिसनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राष्ट्रपति ने पूरे सोच समझ कर ही उत्तराखंड में 356 लागू की है। जवाब में चीफ जस्टिस ने कहा कि राष्ट्रपति ही नहीं, जज भी गलती कर सकते हैं।

पीठ की ओर से राज्यपाल के केंद्र को भेजे गये पत्रों को लेकर लगातार कई सवाल पूछे गये।

गवर्नर के केंद्र को भेजे गये पत्र में 18 मार्च के बाद हरक सिंह रावत को कैबिनेट से हटाने व एडवोकेट यूके उनियाल को बाहर करने के औचित्य पर भी पीठ ने सवाल किया। एएसजे मेहता ने कहा कि सरकार 18 को बहुमत खो चुकी थी। उसे ऐसी किसी कार्रवाई का अधिकार नहीं रह गया था। पीठ ने यह भी कहा कि राज्यपाल के पत्र में 28 को विश्वास मत के लिए विधायकों के राजधानी में होने की भी जानकारी दी गयी थी।

सुनवाई में कैबिनेट के राष्ट्रपति शासन के लिए भेजे गये नोट पर बहस नहीं हुई। केंद्र के वकील ने इस पर आपत्ति जताई। पीठ ने कहा कि फैसले में इसका उल्लेख होगा। हरीश रावत के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने जबाव देना शुरू किया। उन्होंने कहा कि 18 को मनी बिल गिरने का दावा गलत है। गवर्नर के सचिव के मत विभाजन के पत्र का कोई औचित्य नहीं है। यह भाजपा के विधायकों का मात्र एक पत्र था, जो कि स्पीकर को फॉरवर्ड किया गया। 18 मार्च के इस पत्र में 27 विधायकों के ही हस्ताक्षर थे।

बागी विधायक आज भी कांग्रेस के साथ: द्विवदी 
उधर, बर्खास्त विधायकों के वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि 9 बागी विधायक आज भी कांग्रेस के साथ हैं। बुधवार को हाईकोर्ट में दलील देने के बाद मीडिया से बात कर रहे थे द्विवेदी। उन्होंने कहा कि हरीश रावत के खिलाफ थे बागी विधायक, वे आज भी इसी बात पर कायम हैं।