जिसकी लेखनी बतायी गई कमजोर, वह बना बुकर जीतने वाला पहला अमेरिकी…

paul_650_102616123730साल 2016 के बहुप्रतिष्ठित व बहुप्रतिक्षित मैन बुकर पुरस्कार घोषित किए जा चुके हैं. ऐसा मैन बुकर पुरस्कार के इतिहास में पहली बार हुआ है कि किसी अमेरिकी ने इस पुरस्कार को जीता है. इस वर्ष पॉल बीटी ने यह पुरस्कार जीता है. उन्हें उनकी उपन्यास ‘द सेलआउट’ के लिए इस वर्ष मैन बुकर पुरस्कार से नवाजा गया है. पॉल की उम्र 54 साल है और वे लॉस एंजिलिस में पैदा हुए थे. साथ ही वे अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अध्यापन का कार्य भी करते हैं|

‘द सेलआउट’ को माना जा रहा है कटाक्ष…
मैन बुकर पुरस्कार के जजिंग पैनल में शामिल जानकारों का मानना है कि पॉल का नॉवेल अमेरिका की समकालीन नस्लीय राजनीति पर करारा कटाक्ष है. वे बहुत ही सधे अंदाज में सबकी खबर लेते हैं और पता तक चलने नहीं देते. उनकी लेखनी में पाठकों को शुरुआत से अंत तक बांधे रहने की अद्भुत क्षमता है|

आसान नहीं था सफर…
आज भले ही पॉल की लिखावट पर पूरी दुनिया लट्टू हो रही हो लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. अमेरिका जैसे देश में जहां नस्ल और वर्ग की राजनीति हावी रहती हो वहां अपनी कल्पनाओं को कागज पर उतारना आसान नहीं था. अलगाव और गुलामी से लड़ने के लिए कलम का सहारा लेना और अपनी अफ्रीकी-अमेरिकी पहचान को लेकर हमेशा सतर्क रहना तलवार की धार पर चलने जैसा रहा|

गुदगुदी और दर्द साथ-साथ…
पॉल की लेखनी से वाकिफ जानकार कहते हैं कि वे अपना सबकुछ शब्दों के सहारे छोड़ देते हैं. उनकी लेखनी जहां लोगों को किसी वक्त चेहरे पर मुस्कान लाती है तो वहीं दूसरे पल मायूस कर जाती है. इसके बावजूद कि उनकी किताब को पूरी दुनिया में व्यंग्य के तौर पर प्रतिष्ठा मिल रही है. वे उसे व्यंग्य के बजाय हकीकत का दस्तावेज मानते हैं|

उनके शिक्षकों ने जताई थी निराशा…
आज भले ही पॉल को पूरी दुनिया उनके द्वारा लिखी गई किताब के लिए जानने लगी हो, लेकिन कभी उनके कॉलेज के प्रोफेसरों ने उन्हें लिखने से मना किया था. उनके कॉलेज के एक प्रोफेसर ने कहा था कि वे अच्छा नहीं लिखते. वे लेख के तौर पर कभी सफल नहीं होंगे. इसके अलावा वे अपनी निजी जिंदगी में भी परफेक्शनिस्ट हैं. वे किसी भी चीज या काम से जल्द ही बोर हो जाते हैं|

वे इस पुरस्कार के मिलने पर कहते हैं, ‘मैं नाटकीय नहीं होना चाहता, जैसे कि लिखने ने मेरी जिंदगी बचाई हो… लेकिन लिखने ने मुझे एक जिंदगी जरूर दी है’. वे लिखने को एक कठिन कार्य मानते हैं और वे लिखना नापसंद भी करते हैं|