मेरी चिट्ठी युवाओ के नाम

1459670_1074798882586874_686345994411916904_nप्रिय युवा साथियों ,
आपके नाम मैं अपना पहला पत्र लिख रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ कि यह सिलसिला काफी लम्बा चलेगा। अभी तक मेरी चिट्ठी नाम का यह पत्र मैं छोटे बच्चों (कक्षा 6 से 12 तक) के लिए लिखता रहा हूँ , मैं छोटे बच्चों के नाम मेरी चिट्ठी दिनांक 30/09/2013 से समय – समय पर लिख रहा हूँ  और आगे भी लिखता रहूँगा लेकिन अब मैं आप युवा साथियों के लिए भी लिखूँगा , ऐसे युवा साथियों के लिए जो काॅलेज और अन्य संस्थानों में अध्ययन कर रहे हैं और जो मेरी तरह नौकरियाँ कर रहे हैं । मैं छोटे बच्चों के लिए लिखता हूँ क्योंकि वे देश की , समाज की उम्मीद हैं , आने वाले समय के कर्णधार हैं । मैं आप युवाओं के लिए लिखना चाहता हूँ क्योंकि आप देश और समाज का वर्तमान हैं , आप इसे दिशा देने वाले हैं और आप ही देश और समाज के सबसे मजबूत कंधे हैं । आपके शिक्षण संस्थानों के नोटिस बोर्ड पर और सार्वजनिक स्थानों पर में इसे चस्पा करूँगा ताकि आप इसे पढ़ सके । मेरी इस चिट्ठी के विषय अलग – अलग होंगे और जैसा मैं सोचता हूँ वैसा ही लिखूँगा । मुझे उम्मीद हैं कि आप इसे जरूर ही पसन्द करेंगे । आज मैं आपको विचारों के बारे में वो बताना चाहता हूँ जो अब तक मैंने पढ़कर , दूसरों से बातकर और अपने अनुभव से जाना हैं । पहली बात ये कि दुनिया में जो भी कार्य होता हैं , चाहे अच्छा या बुरा , वो एक विचार की उपज हैं । दूसरी बात ये कि सभी संघर्ष और मेल – मिलाप दोनों विचारों के कारण हैं । तीसरी बात ये कि कभी भी किसी भी विचार को गोली नहीं मारी जा सकती या कहें कि विचारों की हत्या नहीं की जा सकती । अब आप भी मेरी बातों पर विचार किजीएगा ।
कथन
क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रों का एक क्रान्तिकारी कथन मैं यहाँ लिख रहा हूँ —
“ लोग अक्सर मानवीय अधिकारों की बात करते हैं , लेकिन ज़रूरी यह हैं कि मानवता के अधिकारों की भी बात की जाए । कुछ चुनिंदा लोगों को आरामदेह कारों की सुविधा प्रदान करने के लिए ज़्यादातर लोग नंगे पैर क्यों घूमें ? कुछ लोग केवल इसलिए 35 साल की उम्र में मौत के शिकार क्यों हो जाए ताकि कुछ दूसरे 70 साल की उम्र तक जिन्दा रह सकें ? कुछ लोगों को अमीर बनाने के लिए ज्यादातर लोग घोर गरीबी का जीवन क्यों बिताए ? मैं दुनिया के उन भूखे हजारों बच्चों के लिए बोलता हूँ , जिन्हें रोटी का एक टुकड़ा भी नसीब नहीं होता । मैं उन बीमार लोगों का हिमायती हूँ , जो औषधि के अभाव में बेमौत मर रहे हैं । और मैं उन लोगों की पैरवी करता हूँ , जो जीवन के अधिकार और मानवीय सम्मान से भी वंचित हैं । ”

आलेख : राम वशिष्ठ